एक भिखारी और व्यापारी कि Motivational Story

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By Hitesh Kumar

ट्रेन में एक भिखारी भीख मांग रहा था लेकिन उसे लोग ज्यादा भीख नहीं देते थे | तभी उसने वहां पर एक सूट बूट पहने व्यक्ति को देखा तो उसके दिमाग में ख्याल आया कि शायद ये व्यक्ति उसे अच्छी खासी भीख मिल सकती है | वह उस व्यापारी से भीख मांगने गया परन्तु उस भिखारी को देख कर उस व्यक्ति ने कहा कि तुम हमेशा किसी न किसी से मांगते रहते हो क्या कभी किसी को उसके बदले में कुछ देते भी हो ?

भिखारी बोला : – साहब मैं तो भिखारी हूँ मेरी इतनी औकात कहां कि मैं बदले में लोगों को कुछ दे सकूँ?

व्यापारी – तुम जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हे मांगने का भी कोई हक़ नहीं| मैं एक व्यापारी हूँ और सिर्फ लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ| अगर तुम्हारे पास बदले में कुछ देने को नहीं है तो मैं तुम्हे भीख क्यों दूँ | तभी उस व्यापारी का स्टेशन आ गया और वह उतर गया और चला गया|

भिखारी व्यापारी कि कही हुई बात के बारे में सोचने लगा| बहुत कुछ सोचने के बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि ऐसा क्या दिया जाये कि मुझे बदले में भीख ज्यादा से ज्यादा मिल सके| और ऐसे ही सोचते-सोचते सो गया| दूसरे दिन जब वह स्टेशन पर भीख मांगने के लिए गया तो उसकी नजर स्टेशन के आस-पास खिलते हुए फूलों पर पड़ी और उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों ना मैं लोगों को भीख के बदले फूल दूँ| और उसने वहां से फूल तोड़ लिए|

वह ट्रेन में भीख मांगने के लिए चला गया| जब भी उसे कोई भीख देता तो वह लोगों को फूल देता| अब रोज ऐसे ही चलने लगा इस प्रकार उसे रोज ज्यादा भीख मिलने लगी | वह तब तक लोगों से भीख मांगता जब तक कि उसके फूल खत्म नहीं हो जाते थे|

एक दिन वह भीख मांग रहा था तो उसे वहां पर उसने वही व्यापारी को देखा जिसने उसे लोगों को भीख के बदले में कुछ देने कि प्रेरणा मिली थी|

भिखारी तुरंत ही उस व्यापारी के पास गया और भीख मांगते हुए बोला, क्या आपने मुझे पहचाना? उस व्यापारी ने उत्तर दिया नहीं | उस भिखारी ने कहा की आज मेरे पास आपको भीख के बदले में देने के लिए फूल हैं | ये बात सुनकर व्यापारी ने उस भिखारी को पहचान लिया और कहा कि हाँ हाँ पहचान लिया | अगर आज तुम्हारे पास मुझे बदले में कुछ देने को है तो मुझे भी तुम्हे भीख देने में कुछ हर्ज नहीं है | व्यापारी ने उसे भीख में कुछ पैसे दिए और बदले में उस भिखारी ने उसे कुछ फूल दिए | ये सब देखकर व्यापारी बहुत खुश हुआ | और कहा कि आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गये हो, इतना कहा ही था कि उसका स्टेशन आ चूका था और वह वही पर उतर गया |

लेकिन इस बार फिर से व्यापारी द्वारा कही गयी बात उसके दिल में उतर गयी और वह फिर से उस व्यापारी कि बातो के बारे में सोचने लगा और वह मन ही मन बहुत खुश भी हो रहा था कि मैं भी व्यापारी बन गया हूँ | वह इतना खुश हुआ जैसे मानो सफलता कि चाबी मिल गयी हो | वह वहां पर स्टेशन पे उतरा और आसमान कि तरफ देखकर भगवान का शुक्रिया अदा करने लगा और कहने लगा कि मैं भी अब व्यापारी बन गया हूँ | परन्तु लोग ये सब देखकर उसपर हंसने लगे और कहने लगे कि पागल हो गया है |

बस फिर क्या था वह लग गया अपने मिशन पर और फिर से उस स्टेशन पर भीख मांगता हुआ कभी दिखाई नहीं दिया | कुछ वर्षो बाद उसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट में आये और अपने अपने गंतव्य कि तरफ जा रहे थे और ट्रैन में बैठ गए | तभी एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से कहा, “क्या आपने मुझे पहचाना?”

व्यापारी – नहीं तो| शायद हम इस से पहले कभी नहीं मिले|

दूसरा व्यक्ति – सर जी याद कीजिये हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे है|

ये सुनकर व्यापारी हैरत में पड़ गया और सोचने लगा | और कहा कि मुझे याद नहीं आ रहा| वैसे हम पहले कब मिले थे?

दूसरा व्यक्ति बोला हम पहले भी दोनों बार इसी ट्रैन में ही मिले थे | याद कीजिये मैं वही भिखारी हूँ जिसे आपने पहली मुलाकात में भीख के बदले में कुछ देने कि सीख दी थी| और दूसरी मुलाकात में बताया था कि मैं एक भिखारी नहीं बल्कि एक व्यापारी हूँ|

व्यापारी – ओह ! याद आया, याद आया| परन्तु तुम आज सूट बूट में कहा जा रहे हो? और आजकल भीख नहीं मांग रहे तो क्या कर रहे हो?

भिखारी – मैं भी अब एक व्यापारी बन चूका हूँ वो भी सिर्फ और सिर्फ आपकी दी हुई सीख से| मैं फूलों का एक व्यापारी बन चूका हूँ जो कि आज फूल खरीदने के लिए दूसरे शहर जा रहा हूँ|

आपसे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम का पता चला था… जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम उन्हें बदले में कुछ देते हैं। लेन-देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर बढ़कर मैंने कभी सोचा ही नहीं था | और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। तब तक मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी ही नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।

मैं समझ गया था कि लोग मुझे इतनी भीख क्यों दे रहे हैं क्योंकि वह मुझे भीख नहीं दे रहे थे बल्कि उन फूलों का मूल्य चुका रहे थे। सभी लोग मेरे फूलों को खरीद रहे थे क्योकि इससे सस्ते फूल उन्हें कहाँ मिलते।

मैं वैसे तो एक व्यापारी थे परन्तु अपनी नजरो में एक भिखारी ही था | बस एक आपके द्वारा दिए गए प्रकृति के नियम लेन-देन से ही मुझे एक भिखारी से व्यापारी बना दिया | आपका बहुत बहुत धन्यवाद | इतना कहा कि दोनों का स्टेशन आ चूका था | और दोनों वहां पर उतरे और आगे बढ़ गए| तो आप भी हमेशा इस प्रकृति के नियम को ध्यान में रखिये और अपने आप में बेहतरीन भविष्य की तलाश करें|