बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर – Harivansh Rai Bachchan’s Poem in Hindi

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श्री हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा प्रस्तुत एक बेहतरीन कविता –

बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।।

ऐसा नहीं है की मुझमे कोई ऐब नही है, पर सच कहता हूं मुझे में कोई फरेब नही है।

जल जाते है मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन.क्योंकि एक ज़माने से मैंने
न मोहब्बत बदली है और नहीं दोस्त बदले है।।
एक घड़ी खरीदकर हाथ में क्या बांध ली… -2
ये वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे..।।

सोचा था घर बनाकर सुकून से बैठूंगा…
पर घर जरूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब…
वो बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता।

शौक तो माँ-बाप के पैसो से पुरे होते हैं,
अपने पैसो से तो बस जरूरतें ही पूरी हो पाती हैं….

जीवन की भाग दौड़ में क्यों वक्त के साथ रंगत चली जाती हैं…-2
हस्ती-खेलती जिंदगी भी आम हो जाती हैं।

एक सवेरा था जब हँस कर उठा करते थे हम
और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती हैं।

कितने दूर निकल गए, हम रिश्तो को निभाते-निभाते
खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते।

लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहोत हैं, -2
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

“खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..

चाहता हूँ तो ये दुनिया बदल दू,
पर दो वक्त की रोटी के जुगाड़ से
फुर्सत नही मिलती दोस्तों…

महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली -2
फिर भी ये वक्त मेरे हिसाब से कभी न चला।

यु ही हम दिल को साफ रखने की बात करते हैं,
पता नही था की कीमत चेहरों की हुआ करती हैं..

अगर खुदा नही हैं, तो उसका ज़िक्र क्यों,
और अगर खुदा हैं तो फिर फिक्र क्यों..

दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं -2
एक उसका अहम और दूसरा उसका वहम।

पैसों से सुख कभी ख़रीदा नही जाता दोस्तों -2
और दुःख का कोई खरीदार नही होता।

मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नही -2
पर सुना हैं सादगी में लोग जीने नहीं देते।

किसी की गलतियों का हिसाब न कर -2
खुदा बैठा हैं तू हिसाब न कर..
ईश्वर बैठा हैं तू हिसाब न कर।।

श्री हरिवंश राय बच्चन