Pal Ek Mujhe by Pragya Shukla

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कल फिर कर लेंगे, बात कभी जमाने की,

पल एक मुझे कुछ अपनी भी कह लेने दो

कल फिर पोछेंगे अश्क़ कभी जमाने के

अपने हिस्से का गम मुझे सह लेने दो ||१||

कल फिर देखेंगे वक़्त की तहरीरों को,

पल एक मुझे पुराना खत कोई पढ़ लेने दो,

कल फिर कर लेंगे बातें कभी तबाही की

पहचान मुझे दरों दीवारों कि कर लेने दो ||२||

कल फिर कर लेंगे बात कभी तुफानो कि,

पल एक मुझे यूँ मंद हवा संग बहने दो,

कल फिर बाटेंगे दर्द प्रायों का मिलकर

पल एक मुझे अपनों से शिकवा कर लेने दो ||३||

कल फिर खोजेंगे मोती कभी समंदर के

पल एक मुझे तट पर सीपों को चुन लेने दो

कल फिर कर लेंगे बात गुलों गुलज़ारों की,

पल एक मुझे खारों में भी रह लेने दो ||४||

कल फिर कर लेंगे बात कभी वीरानों की

पल एक मुझे इस बस्ती में रह लेने दो

कल फिर कर लेंगे नग्मों की बरसात यहाँ

पल एक मुझे दर्द भरा वो गीत गा लेने दो ||५||

लेखक – प्रज्ञा शुक्ला